क्यों हर बार हर तरफ अँधेरा छा जाता है
क्यों मुझको आज फिर उसी बात पे रोना आता है
कुछ तो आज भी दिल में टूटता है
कुछ तो ज़ख्म आज भी हरे जातें हैं
अपने अंदर ऐसा सैलाब क्यों आया है
उस दर्द को सहेज कर मैंने क्या पाया है
वोह दर्द है मेरा या कोई दिल का हिस्सा
या बस उन हसींन दिनों का एक किस्सा
आज भी तेरी बातें मुझको सताती हैं
आज भी तेरी हंसी मेरे होंठों पे मुस्कराहट लाती है
फिर क्या हो गया है ऐसा
क्यों नहीं है रिश्ता हम दोनों में पहेले जैसा
आज भी तेरी आवाज़ का दर्द मुझे दिखाई देता है
आज भी वोह दर्द मुझे दर्द देता है
लम्हों की जिंदगानी में क्या हम हो गए इतने जुदा
की अनकहे लफ़्ज़ों में कहाँ हमने एक दुसरे को
" अलविदा "
0 comments:
Post a Comment